3 May 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
वयस्क लोगों के मुकाबले छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती है। इसी कारण उन्हें मौसमी बीमारियों समेत अस्थमा होने का जोखिम भी अधिक हो सकता है। ऐसे में अगर बच्चों में दमा हो जाए, तो क्या बच्चों को इनहेलर देना सुरक्षित होता है? या क्या बच्चों में दमा से बचाव के लिए इनहेलर के साइड इफेक्ट हो सकते हैं?
बच्चों को इनहेलर देना चाहिए या नहीं, इसी से जुड़े विभिन्न सवालों की जानकारी बेबीचक्रा के इस लेख में दी गई है। यहां बच्चों को अस्थमा क्यों होता है, इसके लक्षण समेत बच्चों को इनहेनर देने से जुड़ी जानकारी भी पढ़ सकते हैं।
छोटे बच्चों में दमा या बच्चों में अस्थमा (Chote Baccho mein Asthma) की बात करें, तो यह एक सांस संबंधी बीमारी है। अस्थमा होने पर एयरवे (airways) यानी सांस की नली में सूजन हो जाती है, जिसकी वजह से सांस लेने में परेशानी होने लगती है। साथ ही, यह बच्चों में खांसी समेत धूल से एलर्जी की समस्या को भी बढ़ा सकता है।
बच्चों में अस्थमा होने के कारण (Chote Baccho mein Asthma) निम्नलिखित हो सकते हैं, जैसेः
बच्चों में अस्थमा के लक्षण (Chote Bacho mein Asthma ke Lakshan) इस तरह पहचाने जा सकते हैं-
बच्चों में दमा की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखिति प्रक्रिया अपना सकते हैं, जिसमें शामिल हैंः
1. बच्चे के लक्षणों की निगरानी करना – सबसे पहले डॉक्टर बच्चे में खांसी, सर्दी-जुकाम व बुखार से संबंधित लक्षणों की जांच कर सकते हैं। बच्चे को कब और किस तरह से खांसी आती है, इसके बारे में सवाल पूछ सकते हैं।
2. परिवार के स्वास्थ्य की जांच करना – कुछ मामलों में डॉक्टर परिवार के सदस्यों की मेडिकल हिस्ट्री से जुड़े सवाल भी पूछ सकते हैं। इससे डॉक्टर को यह जानने में मदद मिल सकती है कि बच्चे में आस्थमा स्वाभिक है या आनुवांशिक है।
3. सीने का एक्स रे करना – बच्चों में दमा का निदान करने के लिए सीने का एक्स-रे भी किया जा सकता है।
4. एलर्जी टेस्ट – अगर बच्चे को अस्थमा किसी विशेष खाद्य पदार्थ के सेवन या जानवरों के बाल के कारण हैं, तो एलर्जी टेस्ट के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है। इसके लिए स्किन टेस्ट या ब्लड टेस्ट किया जा सकता है।
5. फेफड़े की जांच करना – अगर बच्चा 6 वर्ष या इससे अधिक उम्र है, तो डॉक्टर सांस संबंधी जांच के लिए बच्चे में फेफड़े की जांच की सलाह बी सकते हैं।
मौजूदा समय में बच्चों में दमा का पूर्ण इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि, बचाव व इलाज की प्रक्रिया से बच्चों में अस्थमा के लक्षण को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए किस तरह के इलाज की प्रक्रिया व बचाव की बातों का ध्यान रखना चाहिए, यह हम नीचे बता रहे हैं।
मैटरनल केयर और चाइल्ड न्यूट्रिशन एक्सपर्ट डॉक्टर पूजा की सलाह के अनुसार, 1 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए अस्थमा की रोकथाम (Asthma Prevention Tips in Children) के लिए निम्नलिखित टिप्स को फॉलो किया जा सकता हैः
बच्चों को इनहेलर या नेबुलाइजर देना उन दवाओं में शामिल की जाती है, जो बच्चों में दमा के लक्षण कम करने में जल्द असर करती हैं। हालांकि, इनके सेवन की सलाह डॉक्टर तभी देते हैं, जब बच्चे को अचानक से अस्थमा का अटैक आया हो।
इनहेलर एक तरह का छोटा उपकरण है, जिसे सांस के जरिए लिया जाता है। इससे सांस की नली में आए अवरोध को तुरंत दूर किया जा सकता है और सांस लेने की समस्या को तत्काल रूप से दूर किया जा सकता है।
बच्चों को इनहेलर हमेशा डॉक्टर व चिकित्सीय सलाह के अनुसार ही देना चाहिए। आमतौर पर जब बच्चे में अचानक से अस्थमा के लक्षण या सांस से संबंधी परेशानी हो जाए, तो ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर बच्चों को इनहेलर देने की सलाह दे सकते हैं।
बड़ों व वयस्कों के लिए इनहेलर का इस्तेमाल करना सुरक्षित माना गया है। हालांकि, अगर गलत तरीके से इनहेलर का इस्तेमाल किया जाए, तो इनहेलर के साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जैसेः
नेब्युलाइजर एक तरह की ड्रॉप होती है, जिसे नाक में डाली जाती है। यह नाक में डालते ही धुंध में बदल जाती है और सांस लेने की प्रक्रिया को आसान कर देती है।
बच्चों को अस्थमा हो या फिर किसी वयस्क को, मौजूदा समय में अस्थमा का पूर्ण इलाज उपलब्ध नहीं। डॉक्टरी इलाज, दवाओं के सेवन व इनहेलर के इस्तेमाल से बच्चों को अस्थमा के गंभीर प्रभाव से बचाया जरूर बचाया सकता है।
नहीं, यह बहुत ही दुर्लभ मामलों में हो सकता है। हालांकि, अगर डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों, दवाओं व बचाव को ध्यान में रखा जाए, तो अस्थमा के इलाज को संभव बनाया जा सकता है।
बच्चों में अस्थमा के लक्षण (Chote Baccho mein Asthma) काफी हद से नियंत्रित किए जा सकते हैं। इसके लिए पेरेंट्स को बस इससे बचाव से जुड़ी बातों का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, पेरेंट्स बच्चों को इनहेलर का इस्तेमाल करने का सही तरीका भी सिखा सकते हैं, ताकि बच्चा खुद से अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने में सक्षम बन सके।
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