13 May 2022 | 1 min Read
Vinita Pangeni
Author | 549 Articles
गर्भावस्था के साथ ढेरों खुशियां, आनंद, उत्साह और गोद भराई जैसे जश्न भी साथ में आते हैं। लेकिन कुछ के लिए, गर्भावस्था अवसाद से घिरी भी होती है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो प्रेग्नेंसी में न सिर्फ माँ को बल्कि बच्चे को भी खतरे में डालती है। क्या है प्रसवकालीन अवसाद और इसके इलाज के बारे में आगे जानते हैं।
प्रसवकालीन अवसाद को अंग्रेजी में पेरीनेटल डिप्रेशन (Perinatal depression) कहा जाता है। यह एक मनोदशा विकार है, जो गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को प्रभावित करता है। “प्रसवकालीन” शब्द बच्चे के जन्म से पहले और बाद के समय को दर्शाता है।
प्रसवकालीन अवसाद में दोनों ही तरह के अवसाद शामिल होते हैं। गर्भावस्था के दौरान शुरू होने वाला अवसाद, जिसे प्रसवपूर्व अवसाद कहते हैं। दूसरा अवसाद, जो बच्चे के जन्म के बाद शुरू होता है, जिसे प्रसवोत्तर अवसाद कहा जाता है।
गर्भावस्था से लेकर प्रसव के बाद तक महिला को अवसाद होना आम है। रिसर्च पेपर के अनुसार, प्रसवकालीन अवसाद अनुमानित रूप से 7% से 20% महिलाओं को प्रभावित करता है। इसकी दर 35% से 40% तक है।
प्रसवकालीन अवसाद की स्थिति किसी भी गर्भवती महिला को प्रभावित कर सकती है। ऐसा नहीं है कि यह अवस्था प्रेग्नेंसी में कुछ करने या कुछ न करने के कारण उत्पन्न होती है।
प्रसवकालीन अवसाद का कारण सिर्फ एक नहीं होता है। रिसर्च बताते हैं कि प्रसवकालीन अवसाद आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों के संयोजन से होता है।
जीवन का मौजूदा तनाव, बच्चे को जन्म देने और एक नए बच्चे की देखभाल करने की शारीरिक और भावनात्मक मांगें और हार्मोन में होने वाले परिवर्तन प्रसवकालीन अवसाद की स्थिति को पैदा कर सकते हैं।
इसके अलावा, उन महिलाओं में प्रसवकालीन अवसाद का अधिक खतरा होता है, जिनके परिवार में किसी को अवसाद रहा हो।
कुछ महिलाओं को प्रसवकालीन अवसाद के एक-दो लक्षणों का अनुभव होता है और कुछ में कई सारे लक्षण दिखते हैं। प्रसवकालीन अवसाद के लक्षण में ये शामिल हैं –
प्रसवकालीन अवसाद का उपचार माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। उचित उपचार से अधिकांश महिलाएं बेहतर महसूस करती हैं और उनके लक्षणों में सुधार होता है। आगे जानिए प्रसवकालिन डिप्रेशन के उपचार के तरीके –
मनोचिकित्सा (Psychotherapy)
मनोचिकित्सा को कभी-कभी “टॉक थेरेपी” या “परामर्श” कहा जाता है। प्रसवकालीन अवसाद के इलाज के लिए डॉक्टर महिला से उनकी स्थिति समझने के लिए लक्षण, उनकी भावनाओं, जैसी विभिन्न बातों से जुड़े सवाल कर सकते हैं।
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy (CBT)
यह एक प्रकार की मनोचिकित्सा है, जो अवसाद और चिंता वाले लोगों की मदद करती है। यह थेरेपी लोगों को सोचने, व्यवहार करने और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया देने के विभिन्न तरीके सिखाती है। सीबीटी को व्यक्तिगत रूप से या समान चिंताओं वाले लोगों के समूह के साथ आयोजित किया जा सकता है।
पारस्परिक चिकित्सा (Interpersonal Therapy (IPT)
आईपीटी एक साक्ष्य-आधारित चिकित्सा है, जिससे प्रसवकालीन अवसाद का इलाज होता है। यह इस विचार पर आधारित है कि पारस्परिक और जीवन की घटनाएं मूड को प्रभावित करती भी हैं और नहीं भी।
इसमें सोशल सपोर्ट को विकसित करना, संचार कौशल जैसी अनेक चीजें सिखाई जाती है। साथ ही दुख से बचने के लिए रियालिस्टिक उम्मीदों को पालने की सलाह और जीवन के अन्य मुद्दों से निपटने का कौशल सिखाया जाता है।
दवाई
डॉक्टर डिप्रेशन का इलाज करने के लिए एंटी डिप्रेसेंट दवाई लेने की सलाह दे सकते हैं। गंभीर प्रसवकालीन अवसाद का इलाज करने के लिए सेलेक्टिव सेरोटोनिन रूप्टेक इनहिबिटर (SSRI) लेने की सलाह दे सकते हैं।
एंटीडिप्रेसेंट मस्तिष्क उन रसायनों के उपयोग के तरीकों को बेहतर करते हैं, जो मूड या तनाव को नियंत्रित करते हैं। गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को एंटीडिप्रेसेंट बिना डॉक्टर की सलाह के बिल्कुल शुरू नहीं करना चाहिए।
सबसे पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि अवसाद एक चिकित्सीय स्थिति है। यह गर्भवती महिला, उसके बच्चे और परिवार सभी को प्रभावित करती है।
पार्टनर, दोस्त और परिवार के सदस्य, गर्भवती महिला या नई माँ में प्रसवकालीन अवसाद के लक्षण पहचानने में मदद कर सकते हैं। इसका उपचार ही रिकवरी का एक मात्र तरीका है।
इसलिए, परिवार के सदस्य गर्भवती महिला या नई माँ को चिकित्सक से बात करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। साथ ही भावनात्मक समर्थन (Emotional Support) और घर या बच्चे की देखभाल जैसे दैनिक कार्यों में सहायता कर सकते हैं।
चाइड और मैटरनल न्यूट्रिशन, कम्यूनिटी एक्सपर्ट, पूजा मराठे बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के पहले वर्ष में 6% तक महिलाओं को मेजर डिप्रेशन का अनुभव होता है। प्रसवकालीन समय गर्भावस्था से लेकर बच्चे को जन्म देने के एक साल बाद तक रहता है। इस समय में आप अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देकर भविष्य में महसूस होने वाले दिक्कतों से निपट सकती हैं। साथ ही आत्महत्या जैसे घातक कदम को रोकने में भी मदद करता है।
गर्भावस्था में या उसके बाद आत्महत्या, उदासी, हरदम दुख व चिंता जैसे लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इन लक्षणों की वजह से घबराएं नहीं। ऐसा जरूरी नहीं कि ये डिप्रेशन के लक्षण ही हो। प्रसव के बाद यह लक्षण नजर आएं, तो संभव है कि महिला प्रेग्नेंसी ब्लू से गुजर रही हो। इसके लिए आप अपने थेरेपिस्ट व डॉक्टर से उचित सलाह लें।
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