9 Mar 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
लगभग 38 से 40 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद जब घर के आंगन में नवजात शिशु का आगमन होता है, तो यह सबसे खास पलों में से एक होता है। हर पेरेंट्स की पूरी कोशिश रहती है कि वे अपने बच्चे की देखभाल में किसी तरह की कसर न रखें। इसी के साथ उनके मन में नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, इससे जुड़े विभिन्न सवाल आने लगते हैं। इसी चिंता को दूर करने में यहां पर छोटे बच्चों की देखभाल कैसे करें, इस विषय की जानकारी दी गई है। साथ ही, यहां बेबी केयर से जुड़ी आवश्यक चीजों के बारे में भी बताया गया है।
नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, इसके टिप्स पढ़ने से पहले उन आवश्यक चीजों के बारे में भी जान लें, जो नवजात शिशु की देखभाल के लिए जरूरी हो सकते हैं। ये चीजें शिशु को उसके जन्म के तुरंत बाद भी आवश्यक हो सकती हैं, जैसेः
छोटे बच्चों की देखभाल कैसे करें, यह हर पेरेंट्स के लिए एक चुनौती जैसी होती है, खासकर अगर वे पहली बार माता-पिता बने हो तो। इसी दिशा में पेरेंट्स की मदद करने के हमनें यहां पर नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, इसके लिए 10 उपयोगी तरीके बताए हैं।
नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, इसकी सबसे पहली जिम्मेदारी है बच्चे को समय-समय पर स्तनपान करवाना। इसके लिए हर 2 से 3 घंटे के अंदर नवजात शिशु को स्तनपान करवाना चाहिए। साथ ही, इसका भी ध्यान रखें कि जन्म से लेकर 6 माह तक का होने तक शिशु को सिर्फ माँ का स्तनपान या फॉर्मूला दूध ही पिलाना चाहिए। उसे किसी तरह का ठोस खाद्य नहीं खिलाना चाहिए।
वयस्क लोगों की ही तरह नवजात शिशु को भी अपच व गैस की समस्या हो सकती है। दरअसल, स्तनपान करते समय या दूध पीते समय शिशु हवा निगल सकते हैं, जिसके कारण उनके पेट में गैस बन सकती है और उन्हें पेट दर्द हो सकता है। इसी वजह से दूध पिलाने के बाद शिशु को डकार जरूर दिलाएं।
जन्म से लेकर 1 महीने के बच्चे की देखभाल करते समय काफी सतर्कता जरूरी होती है। शिशु के नाभि में बचा हुआ अम्बिलिकल कॉर्ड जब तक सूखकर अपने आप नाभि से अलग नहीं हो जाता है, तब तक बच्चे की देखभाल करते समय सावधानी बरतें। शिशु के ठूंठ की देखभाल करते समय इसका ध्यान रखें कि वह सीधे तौर पर पानी या गंदे हाथों के संपर्क में न आ पाए।
जन्म से लेकर अगले 2 से 3 सप्ताह तक शिशु को सीधे तौर पर पानी से नहीं नहलाना चाहिए। दरअसल, इस दौरान शिशु के ठूंठ की देखभाल करनी होती है, इसलिए अपने 1 महीने के बच्चे की देखभाल के दौरान उसे बाथटब या शॉवर से नहलाने से बचें। नवजात शिशु को स्पंज बाथ दे सकते हैं।
नवजात शिशु का विकास बहुत ही संवेदनशीलता के दौर से गुजरता है। उसकी त्वचा के साथ ही उसकी हड्डियां भी बहुत मुलायम व नाजुक होती हैं। ऐसी में शिशु को उठाते समय या उसे गोद में लेते समय सतर्क रहना चाहिए। शिशु को जब भी गोद लें या उसे उठाएं, तो उसके सिर और गर्दन को नीचे से हाथ का सहारा देते हुए उठाएं।
छोटे बच्चों की देखभाल कैसे करें, इससे जुड़ी अगली जानकारी उनके डायपर बदलने की प्रक्रिया से जुड़ी है। शिशु को हमेशा अच्छी गुणवत्ता वाला डायपर ही पहनाएं, हो सके तो कॉटन के कपड़े से बने लंगोट बच्चे को पहना सकती हैं। साथ ही, जब भी बच्चे का डायपर बदलें, तो गुनगुने पानी व स्पंज के जरिए उसके डायपर वाले हिस्से को साफ भी करें।
साथ ही, जरुरत के अनुसार, अच्छी गुणवत्ता वाले डायपर वाइप्स, रैश क्रीम या बेबी पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
मालिश न सिर्फ माँ के साथ बच्चे को भावनात्मक रूप से जोड़ती है, बल्कि मालिश करने से बच्चे में तनाव कम हो सकता है। इससे बच्चे का वजन भी स्वस्थ बना रहा सकता है और उनके मानसिक विकास को भी बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए नवजात शिशु का विकास अच्छा हो, इसके लिए नियमित रूप से बच्चे की मालिश करें। मालिश के लिए किसी भी बेबी ऑयल या लोशन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
जन्म से लेकर 1 महीने के बच्चे की देखभाल करते समय इसका ध्यान रखें कि दिनभर में कम से कम वे 16 घंटे की नींद पूरी करें। इस दौरान अक्सर नवजात बच्चे भूख लगने पर ही रोते व जागते हैं। वहीं, जैसे-जैसे नवजात की उम्र बढ़ने लगेगी, उनके जागने की अवधि भी बढ़ने लगेगी। इसलिए, अगर नवजात शिशु जन्म के 1 से 2 माह तक बहुत ज्यादा सोता है, तो घबराएं नहीं और न ही उसे नींद से जगाने की कोशिश करें।
नवजात शिशु धीरे-धीरे हाथों-पैरों को फेंकना सीखना लगते हैं। वे जब भी खुश होते हैं, तो इस दौरान अपने हाथों-पैरों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में नवजात शिशु की सुरक्षा के लिए उनके नाखूनों को छोटा रखें। हर 10 से 15 दिनों में उनके नाखून को काटते रहें।
नवजात बच्चे सो कर उठने के बाद अक्सर रोना शुरू कर देते हैं। फिर स्तनपान करने के बाद वो शांत भी हो जाते हैं, लेकिन कई बार बच्चों का रोना जारी भी रह सकता है। कई बार शिशु का इस तरह हल्का-फुल्का रोना उनके बात करने का, अपनी भूख जाहिर करने एक जरिया भी हो सकता है। ऐसे में बच्चे का रोना बंद कराने के लिए पैसिफायर या चुसनी की मदद ली जा सकती है। हालांकि, अगर शिशु का रोना लगातार जारी रहता है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
इसमें दोराय नहीं कि नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें, यह हर नए माता-पिता के लिए एक नई चुनौती होती है। ऐसे में नवजात शिशु का विकास स्वस्थ व सुरक्षित हो, इसे सुनिश्चित करने के लिए घर के अनुभवी सदस्यों, दोस्तों व विशेषज्ञों की भी मदद ली जा सकती है। उम्मीद है इस लेख में बेबी केयर से जुड़ी बताई गई बातें आपके बच्चे की देखभाल में मददगार साबित होंगे।
A
Suggestions offered by doctors on BabyChakra are of advisory nature i.e., for educational and informational purposes only. Content posted on, created for, or compiled by BabyChakra is not intended or designed to replace your doctor's independent judgment about any symptom, condition, or the appropriateness or risks of a procedure or treatment for a given person.