गर्भवती महिला की प्रेग्नेंसी के आधार पर डिलीवरी की प्रक्रिया को चुना जाता है। कई बार महिलाएं खुद से अपनी प्रसव प्रक्रिया चुनती हैं। अगर आप भी गर्भवती हैं, तो सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी के दौरान और बाद में क्या उम्मीद करनी चाहिए, यहां जानें। इससे आपको डिलीवरी प्रक्रिया चुनने और उसको लेकर खुद को तैयार करने में मदद मिलेगी।
यहां हम बताएंगे कि किन परिस्थितियों में सी-सेक्शन करना सही है और सी-सेक्शन के नुकसान क्या हो सकते हैं। चलिए, सबसे पहले समझते हैं कि सी-सेक्शन क्या होता है।
सी-सेक्शन क्या है?
सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी एक सर्जिकल प्रक्रिया है। इस प्रसव की प्रक्रिया के तहत पेट और गर्भाशय में चीरा (incisions) लगाकर बच्चे को बाहर निकाला जाता है।
रिसर्च के अनुसार, साल दर साल सी-सेक्शन का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, वो भी बिना किसी स्पष्ट प्रमाण के। जैसे कि महिला का किस रोग या शिशु संबंधी जटिलता के कारण सी-सेक्शन किया गया है। ये सब स्पष्ट नहीं होता।
सी-सेक्शन से होने वाली कॉम्प्लिकेशन के चलते सिजेरियन की दर को कम करने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
अधिकांश देशों ने 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित सी-सेक्शन की सीमा (10-15%) को पार कर लिया है।
भारत में भी सिजेरियन दर तेजी से बढ़ रही है। शोध वैज्ञानिक, सिजेरियन सेक्शन की बढ़ती दरों को एक वैश्विक चिंता का विषय बताते है। आगे जानते हैं कि किन परिस्थितियों में सिजेरियन डिलीवरी का फैसला लेना सही होता है।
सी-सेक्शन कब करना सही है
यह प्रसव का तरीका अपनाने का फैसला गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं या महिला की प्राथमिकता के आधार पर लिया जाता है। कई बार सी-सेक्शन डिलीवरी मुनाफा कमाने के लिए भी की जाती है। ऐसे में गर्भवती और परिवार के अन्य सदस्यों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि किन स्थितियों में सी-सेक्शन की सिफारिश की जा सकती है।
घंटों के संकुचन के बाद भी ग्रीवा (cervix) के न फैलने से लेबर का रुकना (Stalled labor) सी-सेक्शन के सामान्य कारणों में से एक है।
गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन में बदलाव के कारण उसे जान का खतरा होने पर सी-सेक्शन अच्छा विकल्प हो सकता है।
गर्भ में शिशु की असामान्य पोजीशन, जैसे पैर, नितंब, कंधे के हिस्से का बर्थ कैनाल में पहले आना। ब्रीच (breech) या ट्रांसवर्ज (transverse) पोजीशन।
एक से अधिक बच्चा गर्भ में हो, तो सी-सेक्शन की जरूरत हो सकती है। खासकर तब जब जुड़वां बच्चों में से एक की पोजीशन सही न हो या फिर तीन से अधिक बच्चे गर्भ में हों।
यदि गर्भाशय ग्रीवा के मुंह (Opening) को प्लेसेंटा कवर करता है यानी प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति है, तो प्रसव के लिए सी-सेक्शन की सिफारिश की जाती है।
प्रोलैप्सड गर्भनाल (Prolapsed umbilical cord) होने पर सी-सेक्शन की सिफारिश की जा सकती है। इस स्थिति में गर्भनाल का लूप गर्भाशय ग्रीवा से फिसल कर बच्चे के आगे चला जाता है।
गर्भवती महिला को गंभीर स्वास्थ्य समस्या, जैसे कि हृदय या मस्तिष्क रोग हो, तो सी-सेक्शन की सिफारिश की जा सकती है।
प्रसव के समय सक्रिय जननांग हर्पिस (genital herpes) संक्रमण है, तो सी-सेक्शन की भी सिफारिश की जाती है।
गर्भवती महिला के बर्थ कैनाल में बड़े फाइब्रॉएड ( fibroid) द्वारा रुकावट डालने पर सी-सेक्शन किया जाता है।
गर्भस्थ शिशु का सिर असामान्य रूप से बड़ा है यानी उसे गंभीर हाइड्रोसिफलस (hydrocephalus) होने पर।
गर्भस्थ शिशु औसत से काफी बड़ा हो (fetal macrosomia)। ऐसे शिशु का वजन 8 पाउंड, 13 औंस (4,000 ग्राम) से अधिक होता है।
महिला को गंभीर श्रोणि यानी पेल्विक फ्रैक्चर (pelvic fracture) होने पर सी-सेक्सन किया जा सकता है।
यूं तो सी-सेक्शन के बाद वजाइनल बर्थ (VBAC) हो सकता है, लेकिन कुछ मामलों में डॉक्टर दोबारा सी-सेक्शन करने की सलाह दे सकते हैं।
सी-सेक्शन के लिए तैयारी
सी-सेक्शन के लिए अस्पताल में होने वाली तैयारी और आपके द्वारा की जाने वाली तैयारी की जानकारी नीचे विस्तार से दी गई है।
प्रेग्नेंसी के आखिरी महीनों में किए गए टेस्ट रिपोर्ट्स अपने पास रखें।
कोई भी पुरानी बीमारी हो, तो उसकी रिपोर्ट भी साथ लेकर जाएं और डॉक्टर को इसके बारे में बताएं।
प्रसव बैग साथ में रखें। इस बैग में ढीले कपड़े, सूती के अंतर्वस्त्र, गर्म शॉल, प्रसव के बाद होने वाले रक्तस्राव के लिए मैटरनिटी पैड, आरामदायक चप्पल, नवजात के लिए जरूरी कपड़े डालें।
सी-सेक्शन डिलीवरी पहले से ही निर्धारित है, तो ऑपरेशन से 8 घंटे पहले ठोस आहार खाएं, 6 घंटे पहले हल्का भोजन करने और 2 घंटे पहले पानी पीने से बचने की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं।
डॉक्टर आपको एनेस्थेसियोलॉजिस्ट (सर्जरी के दौरान दर्द न होने वाला इंजेक्शन देने वाले चिकित्सक) से बात करने को कह सकते हैं। इस दौरान ऐसी चिकित्सकिय स्थितियों पर बात होती है, जिनसे एनेस्थीसिया संबंधी जटिलताओं का जोखिम बढ़ता है।
ऑपरेशन से पहले कुछ टेस्ट होते हैं, जिनके लिए प्रीऑपरेटिव लैब सैम्पल लिए जाते हैं। इससे ब्लड काउंट (CBC), एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सिफलिस (syphilis) इंफेक्शन का पता लगाने वाले टेस्ट शामिल होते हैं।
इसके साथ ही गर्भवती महिला को आईवी फ्लूइड (IV fluids) लगाए जा सकते हैं।
अगर ऑपरेशन के समय शरीर का रक्त कम होने का जोखिम है, तो सर्जरी शुरू करने से पहले रक्त उपलब्ध होना चाहिए।
आपको सर्जरी संबंधी फॉर्म भी भरना होगा और डॉक्टर से ऑपरेशन संबंधी सभी सवाल आप कर सकते हैं।
ऑपरेशन से पहले कोई दवाई ली है या स्मोकिंग की हो, तो डॉक्टर को इसके बारे में बताएं।
प्रसव के लिए आने के बाद भ्रूण के हाल की पोजीशन और अनुमानित वजन से जुड़ी जानकारी डॉक्टर के पास रिपोर्ट्स के रूप में या लिखित होनी चाहिए।
सर्जन और एनेस्थेसियोलॉजिस्ट, सर्जरी से पहले एक्सटर्नल फेटल मॉनिटर से स्थिति का मूल्यांकन कर सकते हैं।
एनेस्थिसिया देने से पहले रक्तचाप, नाड़ी और ऑक्सीजन सेचुरेशन मॉनिटर किया जाता है।
ऑपरेशन की पूरी तैयारी के बाद सबसे पहले महिला को एनेस्थिसिया दिया जाता है। इससे गर्भवती महिला का शरीर सुन्न किया जाता है, ताकि ऑपरेशन के दौरान माँ को दर्द न हो।
महिला की हाथों की नस में सूई लगाई जाती है, जो कैथेटर यानी एक ट्यूब से जुड़ी होती है। इस ट्यूब के माध्यम से महिला को IV फ्लूइड और दवाइयां दी जाती हैं।
इसके बाद महिला के पेट को अच्छे से साफ किया जाता है, ताकि किसी तरह के इंफेक्शन का खतरा न हो।
सिजेरियन डिलीवरी का तरीका
जैसे ही एनेस्थिसिया पूरी तरह असर दिखाता है, वैसे ही डॉक्टर नीचे बताई गई तकनीक से सिजेरियन डिलीवरी शुरू करते हैं।
लैपरोटॉमी (Laparotomy)
पेट में बच्चे तक पहुंचकर डिलीवरी करने के लिए सर्जन पेट में चीरा लगाते हैं। इसी प्रक्रिया को लैपरोटॉमी कहा जाता है। डिलीवरी के लिए दो तरह से चीरा लगा सकते हैं।
डॉक्टर महिला के पेट में सीधा चीरा लगा सकते हैं। सीधा चीरा लगाने से डॉक्टर गर्भाशय तक जल्दी पहुंच पाते हैं। यह चीरा लगाने से ब्लड लॉस भी कम हो सकता है।
डॉक्टर नाभि से प्यूबिक हेयर तक टेढ़ा चीरा भी लगा सकते हैं। इसके अलावा, सबसे प्रचलित बिकनी लाइन कट यानी पेट के निचले हिस्से में क्षैतिज यानी हॉरिजॉन्टल चीरा लगा सकते हैं। चीरा लगाने के बाद अंदर की मांसपेशियों को हटाया जाता है, ताकि गर्भस्थ शिशु दिख सके।
हिस्टेरोटॉमी (Hysterotomy)
पेट में चीरा लगाने के बाद यूट्रस में एक चीरा लगाया जाता है। इस प्रोसीजर को हिस्टेरोटॉमी कहा जाता है। गर्भाशय में चीरा सीधा लगाना है, टेढ़ा लगाना है या आड़ा, यह पूरी तरह से शिशु की पोजीशन और प्लेसेंटा यानी गर्भनाल पर निर्भर करता है।
डिलीवरी (Delivery)
यूट्रस में चीरा लगाने के बाद डॉक्टर एम्नियोटिक फ्लूइड को तोड़कर इस चीरे वाली जगह से बच्चे को बाहर निकालते हैं। डिलीवरी के दो ही महत्वपूर्ण पहलू होते हैं। पहला चीरा और दूसरा शिशु के सिर को सुरक्षित बाहर निकालना। ये दोनों ही काम सही से होने के बाद शिशु को बाहर निकाला जाता है।
टांके (Suture)
डिलीवरी के बाद गर्भनाल को दो साइड से कलैम्प करके (दबाकर) बीच से काट दिया जाता है। उसके बाद अच्छे से पूरे नाल (Placenta) को बाहर निकालकर पेट और यूट्रस दोनों जगह लगाए गए चीरे में टांके लगा दिए जाते हैं।
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे और नुकसान
हर चीज के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, सिजेरियन डिलीवरी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। अधिकतर मामलों में नॉर्मल डिलीवरी को ही अच्छा माना जाता है। लेकिन, जब शिशु को जटिलताओं के साथ दुनिया में लाना हो, तो सिजेरियन डिलीवरा के फायदे होते हैं। आगे इन दोनों के बारे में विस्तार से जानिए।
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे
किसी चिकित्सीय स्थिति के कारण मां या बच्चे को होने वाले खतरे के मामले में सिजेरियन डिलीवरी के फायदे होते हैं। इसे सुरक्षित माना जाता है और जच्चा-बच्चा को मृत्यु दर व बीमारियों से बचाया जा सकता है।
यह प्रसव की प्रक्रिया को गर्भवती महिला और रिश्तेदारों के हिसाब से निर्धारित किया जा सकता है।
महिला भविष्य में मूत्र अनियंत्रित (incontinence) से बचा सकती है।
सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान
सिजेरियन डिलीवरी के कारण ज्यादा दिनों तक महिला को अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है।
महंगा प्रसव का तरीका
टांकों में संक्रमण होने का खतरा
ऑपरेशन में ब्लड लॉस से खून की कमी
खून के थक्के जमने का जोखिम
थक्के बनने से रक्त वाहिकाओं में ब्लॉकेज
सर्जिकल चीरा वाले हिस्से पर दर्द होना
रिकवर होने में ज्यादा समय लगना
स्तनों में दूध का देरी से उतरना
गंभीर इंफेक्शन (Sepsis)
पेट की मांसपेशियों का कमजोर होना
सर्जरी के चलते आंत और मूत्राशय में जख्म होने का खतरा
प्रसव के दौरान गर्भाशय में जख्म लगने से मां की मृत्यु का जोखिम
भविष्य के गर्भधारण में प्लेसेंटल संबंधी समस्याओं का पनपना या गर्भ के फटने का खतरा। इसके चलते गंभीर बीमारी और मृत्यु तक हो सकती है।
प्रसव के दौरान एम्नियोटिक द्रव का मां के ब्लडस्ट्रेम में चला जाना।
बच्चों में अस्थमा, एटोपिक डर्मेटाइटिस (त्वचा एलर्जी), और सीलिएक रोग (ग्लूटेन असहिष्णुता) का खतरा अधिक होना।
शिशुओं में अस्थमा जैसी सांस लेने की समस्या का खतरा अधिक होता है।
प्रसव के बाद नवजात को केयर यूनिट एनआईसीयू में भर्ती होने की आशंका रहती है।
स्टील बर्थ यानी मृत शिशु के पैदा होने का खतरा रहता है।
लेबर शुरू होने से पहले सिजेयरियन करने से शिशु में फेफड़े संबंधी दिक्कत हो सकती है।
डिलीवरी के बाद रिकवरी
सी-सेक्शन के बाद हॉस्पिटल में ही आपको कुछ दिनों तक भर्ती रहना होगा। इस दौरान दर्द कम करने वाली दवाइयां दी जाती रहती हैं। साथ ही रोजाना टांकों की जांच होती है, ताकि इंफेक्शन न हो।
ऑपरेशन के बाद एनेस्थीसिया का पूरी तरह से असर खत्म होने पर गैस और कब्ज से बचने के लिए कुछ पीने और हल्का टहलने की सलाह दी जाती है। आइए, आगे जानें सिजेरियन डिलीवरी से रिकवरी कैसे होती हैं।
सी-सेक्शन बाद रक्तस्राव के लिए मैटरनिटी पैड का उपयोग करें और कुछ समय के अंतराल में इसे बदलती रहें।
टैम्पोन का उपयोग 6 सप्ताह तक न करें
भारी सामान न उठाएं और भरपूर बेड रेस्ट करें।
बैड पर बैठने और उतरने में दिक्कत होगी, लेकिन ब्लड क्लॉट से बचने के लिए दिन में एक-दो बार टहलें।
दिन में दो-तीन बार अपना तापमान देखें।
पहले हफ्ते टांकों को साफ और सूखा रखें।
टीकों पर ध्यान दें, वरना संक्रमण का खतरा हो सकता है। डॉक्टर के निर्देश के अनुसार ही सी-सेक्शन के बाद नहाएं।
डिलीवरी के बाद कमजोरी, थकावट, दर्द सबकुछ महिला को बहुत ज्यादा होगा, इसलिए घबराएं नहीं सब्र रखें।
मल त्याग में दिक्कत हो सकती है। इसके लिए डॉक्टर कुछ दवाई देते हैं, जिनके उपयोग से आराम मिल सकता है।
सी-सेक्शन से रिकवर होने में 5 से 6 महीने लगते हैं, इसलिए एक्सरसाइज करने से बचें। आप हल्का टहल सकती हैं। हां, करीब तीन महीने बाद हल्की एक्सरसाइज डॉक्टर की सलाह पर कर सकती हैं।
डिलीवरी के बाद डाइट पर खास ध्यान दें। फाइबर युक्त आहार को प्लेट में जगह दें।
सी-सेक्शन के बाद अगला गर्भ 24 महीने बाद ही धारण करें। अन्यथा गर्भावस्था पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इससे गर्भाशय के टूटने (Uterine rupture) का खतरा रहता है।
इसमें कोई शक नहीं कि सिजेरियन डिलीवरी की तुलना में वजाइनल डिलीवरी में माँ और बच्चे दोनों के लिए बहुत कम जोखिम होते हैं। हां, आपातकाल परिस्थितियों और जटिलताओं में सिजेरियन डिलीवरी ही सुरक्षित विकल्प माना जाता है। इसी वजह से डॉक्टर के साथ अच्छे से सोच-विचार करके ही डिलीवरी की सही प्रक्रिया का चुनाव करें।
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