16 Feb 2022 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
प्रेग्नेंसी में होने वाले हार्मोनल बदलाव से महिला का शरीर कई बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। यही बदलाव प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया होने का जोखिम भी बढ़ा सकता है। इसी विषय से जुड़ी जानकारी आप इस लेख में पढ़ेंगे। यहां गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया के कारण, इसके लक्षण और इलाज की जानकारी भी दी गई है। साथ ही प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण शिशु पर किस तरह का प्रभाव कर सकता है, इसके बारे में भी बता रहे हैं।
प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) एक स्वास्थ्य समस्या है, जो गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं को बढ़ा सकता है। गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया के कारण गर्भवती के उच्च रक्तचाप का स्तर और मूत्राशय में प्रोटीन का उत्पादन बढ़ सकता है। इस वजह से यह गर्भवती के लिवर व किडनी जैसे अन्य आंतरिक अंगों की प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है।
आमतौर पर गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद प्रीक्लेम्पसिया होने का जोखिम बढ़ सकता है। गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया होने पर गर्भवती के रक्तचाप के स्तर में अचानक से वृद्धि हो सकती है। लगभग 3 से 7% गर्भवती महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया होने का जोखिम देखा जा सकता है। अगर इसकी पहचान करने में देरी की जाए, तो यह गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं को बढ़ा सकता है और जच्चे-बच्चे के जीवन के लिए जोखिम भी उत्पन्न कर सकता है।
आमतौर पर प्रीक्लेम्पसिया होने पर महिलाएं बीमार महसूस नहीं करती हैं, इसलिए प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण की पहचाने करने में अक्सर देरी हो जाती है। प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं, जैसेः
नीचे हम प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के गंभीर लक्षण बता रहे हैं, जिनमें शामिल हो सकते हैंः
गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया के कारण विभिन्न हो सकते हैं। हालांकि, इसके होने के सटीक कारण अज्ञात हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया मां के प्लेसेंटा में शुरू हो सकता है, जिस वजह से विभिन्न कारण गर्भावस्था में प्रीक्लेम्पसिया के कारण बन सकते हैं, जैसेः
आगे हम प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया होने के जोखिम कारक बता रहे हैं, जो निम्नलिखित हो सकते हैंः
निम्नलिखित तरीकों के जरिए गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया का निदान किया जा सकता हैः
आमतौर पर प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के इलाज की आवश्यकता नहीं हो सकती है। शिशु के जन्म के बाद लगभग 6 हफ्तों में यह अपने आप दूर हो सकता है। इस दौरान डॉक्टर गर्भवती को कुछ दवाओं की सलाह दे सकते हैं, जो रक्तचाप के स्तर को बढ़ने से रोकने में मदद कर सकेंगे।
इसके अलावा, अगर इसकी स्थिति गंभीर हो जाए, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर सी-सेक्शन के जरिए शिशु के जन्म की सलाह भी दे सकते हैं। इसके चलिए कई बार शिशु को जन्म समय से पहले भी हो सकता है।
प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया होने पर अगर मां के शरीर में रक्तचाप का स्तर सामान्य बनाए रखा जाए, तो यह मां व बच्चे के लिए कम जोखिम वाला हो सकता है। शिशु के जन्म के बाद इसका उचित उपचार किया जा सकता है। हालांकि, अगर प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण गंभीर हो जाए, तो यह शिशु के लिए घातक हो सकता है, इसके विभिन्न प्रभाव अजन्में शिशु पर देखा जा सकता है।
प्रेग्नेंसी में प्रीक्लेम्पसिया क्या है व इसके लक्षण, कारण समेत इसका शिशु के स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है, इसकी जानकारी आपको इस लेख में दी गई है। एक बात का ध्यान रखें कि गर्भावस्था के दौरान विभिन्न दवाओं का सेवन करना गर्भवती के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, अगर महिला को गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसे तुंरत डॉक्टर के पास जाना चाहिए और अपने रक्तचाप को बढ़ने से रोकने के लिए उचित निर्देश का पालन करना चाहिए।
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