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नॅार्मल डिलीवरी या सिजेरियन डिलीवरी मेंटली स्ट्रांग होना है आवश्यक

नॅार्मल डिलीवरी या सिजेरियन डिलीवरी मेंटली स्ट्रांग होना है आवश्यक

6 Oct 2021 | 1 min Read

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गर्भावस्था का समय हर औरत के लिए बहुत ही नाजुक होता है। क्योंकि यह ऐसा समय है जब एक औरत कई तरह के अनुभवों से गुजरती है। जैसे कि प्रेगनेंसी के पहली तिमाही के दौरान होने वाले हार्मोनल परिवर्तन, मूड स्विंग होना, सिर दर्द, चक्कर आना। ऐसे समय में बहुत से लोग यह सलाह देना शुरू करते हैं कि खूब काम करो तो नार्मल डिलीवरी होगी। वजन कंट्रोल रखो नहीं तो सिजेरियन होगा, लेकिन क्या जरूरी है कि अगर यह सब नहीं किया जाए तो नार्मल डिलीवरी नहीं होगी? क्यों नार्मल डिलीवरी पर इतना जोर दिया जाता है? यह दबाव कहीं ना कहीं हर गर्भवती मां के ऊपर होता है। आखिर क्यों नार्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी को लेकर इतना स्ट्रेस होता है, जानिए बेबीचक्रा के इस विशेष ब्लॉग में।

नॅार्मल डिलीवरी क्या है (Normal Delivery)

नार्मल डिलीवरी में वजाइना से शिशु को जन्म दिया जाता है। इसमें किसी तरह की सर्जरी नहीं करनी पड़ती है। लेकिन सिजेरियन डिलीवरी या सिजेरियन सेक्शन में चीरा लगाकर टांका लगाया जाता है। ऐसे बहुत सी स्थितियों में सिजेरियन डिलीवरी करने की सलाह डॉक्टर देती है। क्योंकि नार्मल डिलीवरी के दौरान डिलीवरी में देरी होती है। नार्मल डिलीवरी के बाद महिलाओं में वजन संबधी समस्या कम होती है, लेकिन वजाइनल इंफेक्शन होने का खतरा भी रहता है। सिजेरियन डिलीवरी के फायदे या नार्मल डिलीवरी के फायदे हम आगे बताने वाले हैं, लेख को अंत तक पढ़े – 

सी सेक्शन क्या है  (What is C-section)

सी सेक्शन में दो तरह के होते है एक में बहुत ही हल्का सा चीरा लगाकर शिशु को पेट से बाहर निकलते हैं। दूसरे में बड़ा ऑपरेशन करना पड़ता है ऐसा उस स्थिति में होता है जब शिशु को गर्भ के अंदर कोई परेशानी हो। अगर किसी वजह से सिजेरियन डिलीवरी होता है तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है। अगर डॉक्टर आराम करने की सलाह देती है तो आप रेस्ट करे। अगर 15 दिन बाद आपकी रिकवरी होने लगती है तो बहुत ज्यादा काम नहीं करे।

नार्मल डिलीवरी Vs सिजेरियन डिलीवरी (Normal Delivery Vs Cesarean Delivery)

नार्मल डिलीवरी बिना किसी मेडिकल बाधा के माँ द्वारा बच्चे की पूरी तरह से प्राकृतिक डिलीवरी होती है, हालांकि नार्मल डिलीवरी में दर्द का अनुभव ज्यादा हो सकता है। विशेषज्ञों का ये मानना है कि सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले नार्मल डिलीवरी के फायदे ज्यादा होते हैं, आइए, जानते हैं कि दोनों के बीच क्या अंतर है, फिर आप खुद अपने लिए बेहतर विकल्प चुन सकते हैं – 

नार्मल डिलीवरी सिजेरियन डिलीवरी 
नार्मल डिलीवरी में नुकीले उपकरणों से जुड़े जोखिमों से बचा जा सकता है।सिजेरियन डिलीवरी में नुकीले उपकरणों का प्रयोग होता है।
नार्मल डिलीवरी में मां और बच्चे को संक्रमण होने का खतरा कम होता है।सिजेरियन डिलीवरी में बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है।
नार्मल डिलीवरी में माँ के लिए जल्दी ठीक होना और अस्पताल में कम समय तक रहना भी एक फायदा है।सिजेरियन डिलीवरी में 3 दिनों तक रुकना पड़ सकता है।
शिशुओं को सांस की समस्या होने का खतरा कम होता है क्योंकि प्रसव के संकुचन, बच्चे के फेफड़ों को सांस लेने के लिए मजबूत बना देते हैं।सिजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए बच्चे के फेफड़े अपेक्षाकृत कम मजबूत होते हैं।
नार्मल डिलीवरी लैक्टेशन को उत्तेजित करती है क्योंकि बर्थिंग प्रक्रिया द्वारा कई प्राकृतिक मदरिंग हार्मोन को सक्रिय हो जाते हैं।सिजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों को माँ का पहला दूध तुरंत नहीं मिल पाता है, लैक्टेशन में माँ को भी सुविधा नहीं होती है।

सामान्य प्रसव हो या फिर सिजेरियन डिलीवरी मां और बच्चे दोनों का स्वस्थ्य होना पहली प्राथमिकता है। इसलिए सामान्य प्रसव के लिए दबाव डालना ठीक नहीं है। एक मां के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है उसके गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य। क्योंकि अक्सर सामान्य प्रसव के समय एक मां तनाव में आ जाती है। कहीं ना कहीं उसके मन में प्रसव के दर्द को लेकर बहुत तनाव रहता है। सिजेरियन डिलीवरी हो या नार्मल डिलीवरी वजन बढ़ना सामान्य है। 

इसलिए घबराएं नहीं कुछ महीनों के आराम के बाद आप फिर से रूटीन में वापस आये। शिशु 6 महीने बाद ठोस आहार खाने लगते है। ऐसे में ब्रेस्टफीडिंग को कम कर दे। ऐसा नहीं कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद आपके शरीर पहले जैसा नहीं रहेगा। इसके लिए आपको संयम और खुद के लिए समय निकालने की आवश्यकता है।

नोट- अगर आपको किसी तरह की समस्या है तो डॅाक्टर से अवश्य सलाह लें।

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