3 May 2019 | 1 min Read
Ankita Mishra
Author | 409 Articles
ओलिगोहाइड्रेमनियोस (Oligohydramnios In Hindi) शब्द हममें से बहुत लोगों के लिए एक नया शब्द हो सकता है। वहीं, गर्भावस्था में एमनियोटिक द्रव की कमी का उपचार करा चुकीं महिलाएं इस ओलिगोहाइड्रेमनियोस शब्द से परिचित हो सकती है। बता दें कि माँ के गर्भ में एमनियोटिक द्रव की कमी को ही ओलिगोहाइड्रेमनियोस कहा जाता है।
गर्भ में ओलिगोहाइड्रेमनियोस की स्थिति होने या एमनियोटिक द्रव की कमी होने से क्या तात्पर्य है व इससे किस तरह के जोखिम हो सकते हैं, इसी से जुड़ी अहम जानकारी हम इस लेख में बता रहे हैं। तो बस स्क्रॉल करें और प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रेमनिओस से जुड़ी सारी जानकारी विस्तार से पढ़ें।
माँ का गर्भ न सिर्फ बच्चे की हिफाजत करता है, बल्कि उसे शारीरिक व मानसिक रूप से बेहतर विकास में भी मदद करता है। इस पूरी प्रक्रिया में एमनियोटिक द्रव (Amniotic Fluid Index In Hindi) की सबसे अहम भूमिका होती है। एमनियोटिक द्रव एक तरह का तरल पदार्थ होता है, जो गर्भ में शिशु को बाहरी चोट लगने से सुरक्षा प्रदान करता है और गर्भ को शिशु के लिए आरामदायक स्थान बनाता है।
वहीं, अगर किसी कारणवश माँ के गर्भ में एमनियोटिक द्रव का स्तर सामान्य से अधिक कम हो जाए, तो ऐसी परिस्थिति ओलिगोहाइड्रामनिओस (Oligohydramnios Meaning In Hindi) की समस्या को जन्म दे सकती है।
बता दें, गर्भ में एमनियोटिक द्रव की कमी किस आधार पर तय की जाती है, इसके लिए एक विशेष मात्रा तय की गई है, जिसके बारे में हमनें नीचे बताया है।
सामान्य तौर पर माँ के गर्भ में एम्नियोटिक द्रव की मात्रा गर्भावस्था के लगभग 34वें से 36वें सप्ताह में सबसे अधिक होती है। इस दौरान एम्नियोटिक द्रव की सामान्य मात्रा औसतन 800 मिलीलीटर तक होती है। वहीं, गर्भावस्था के लगभग 40वें सप्ताह तक यह मात्रा सामान्य रूप से लगभग 600 मिलीलीटर तक कम हो जाती है।
वहीं, अगर इस दौरान गर्भ में एमनियोटिक द्रव की मात्रा (Mild Oligohydramnios Meaning in Hindi) 500 मिलीलीटर से कम हो जाए, तो इसे ही प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस स्थिति मानी जा सकती है।
इसके अलावा, कुछ अन्य तरीकों से भी प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस की मात्रा नापी जाती है, जिसमें शामिल हैंः
प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस या एमनियोटिक द्रव की कमी के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं, जैसेः
प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस या एमनियोटिक द्रव की कमी के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः
अगर गर्भ में ही शिशु को किसी तरह का जन्म दोष विकसित होता है, जैसे – किडनी या मूत्र पथ का विकास अधूरा रहना, जो इससे शिशु में मूत्र उत्पादन कम हो सकता है। यही वजह प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस या एमनियोटिक द्रव की कमी का कारण बन सकता है।
अगर माँ को प्लेसेंटा से संबंधित कॉम्प्लिकेशंस जैसा – प्लेसेंटा प्रिविया या अन्य परेशानी होती है, तो यह भी बच्चे तक पर्याप्त मात्रा में रक्त और पोषक तत्व की आपूर्ति का कारण बन सकता है। इसकी वजह से गर्भ में फ्लूड रिसाइकलिंग की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और गर्भ में एम्नियोटिक द्रव की कमी हो सकती है।
अगर गर्भ में माँ की झिल्ली फट जाती है, तो इससे कारण एमनियोटिक द्रव धीरे-धीरे बाहर निकल सकता है। इसके कारण गर्भाशय में एम्नियोटिक द्रव का स्तर घट सकता है, जो गंभीर होने पर प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस का कारण बन सकता है।
बता दें, अगर माँ के गर्भ में एमनियोटिक द्रव की थैली या झिल्ली समय से पहले टूट जाती है, तो इसे एक गंभीर स्थिति मानी जाती है और इसके लिए तत्काल रूप से डॉक्टरी इलाज की आवश्यकता होती है।
अवधि से अधिक की गर्भावस्था यानी ओवरड्यू प्रेग्नेंसी होने पर भी माँ के गर्भ में एमनियोटिक द्रव की कमी हो सकती है। सामान्य तौर पर अगर गर्भावस्था के 40वें सप्ताह के बाद भी प्रसव नहीं होता है, तो ऐसी परिस्थिति को ओवरड्यू प्रेग्नेंसी मानी जाती है।
अगर गर्भावस्था के दौरान माँ का स्वास्थ्य खराब रहता है, उसे निर्जलीकरण, तनाव, गर्भकालीन मधुमेह या प्रीक्लेम्पसिया जैसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी पेरशानी होती है, तो ये स्थितियां भी प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस का कारण बन सकती हैं।
कुछ मामलों में महिला का अधिक उम्र में गर्भधारण करना भी ओलिगोहाइड्रामनिओस का कारण बन सकता है।
अगर प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस की समस्या गर्भावस्था के आखिरी चरणों में होता है, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी का निर्देश दे सकते हैं और गर्भ में बच्चे के अधिक नुकसान होने से रोक सकते हैं। वहीं, अगर प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस का जोखिम गर्भावस्था के पहली या दूसरी तिमाही के बीच में होता है, तो यह अधिक गंभीर हो सकती है।
ऐसी परिस्थितित में प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस से जुड़े जोखिम निम्न समस्याओं को जन्म दे सकती है, जिनमें शामिल हैंः
एम्नियोटिक द्रव में कमी होने पर शिशु का शारीरिक स्वास्थ्य व विकास आसामान्य लक्षणों के साथ नजर आ सकता है, जैसेः
ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार के कई तरीके हैं, ओलिगोहीदृम्निओस ट्रीटमेंट इन हिंदी के बारे में नीचे बताया गया है। सामान्यता अगर गर्भावस्था की पहली या दूसरी तिमाही के दौरान ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार करना जरूरी हो जाता है। वहीं, तीसरी तिमाही में इसके लक्षणों के आधार पर ही डॉक्टर ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार का निर्देश दे सकते हैं।
आइए जानते हैं, ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार यानी ओलिगोहीदृम्निओस ट्रीटमेंट इन हिंदी में विस्तार से।
इस प्रक्रिया में डॉक्टर नसों के जरिए माँ के गर्भाशय से एम्नियोटिक थैली में कम हुए सोडियम क्लोराइड का स्तर सामान्य करते हैं।
अगर शिशु में कम मूत्र उत्पादन के कारण ओलिगोहाइड्रामनिओस की समस्या होती है, तो इसके लिए डॉक्टर वेसिकोएम्नियोटिक शंट की प्रक्रिया अपना सकते हैं। इस प्रक्रिया में गर्भाशय से होते हुए भ्रूण के मूत्राशय में वेसिकोएम्नियोटिक शंट रखा जाता है, जिससे मूत्र के फ्लो बढ़ाया जा सकता है।
फ्लूइड इंजेक्शन या द्रव इंजेक्शन की मदद से गर्भाशय की थैली में ओलिगोहाइड्रामनिओस का उपचार एक अस्थायी समय तक के लिए किया जा सकता है।
अगर डिहाइड्रेशन के कारण एमनियोटिक द्रव की कमी होती है, तो मैटरनल हाइड्रेशन के जरिए एमनियोटिक द्रव का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। यह प्रक्रिया करने के लिए डॉक्टर गर्भवती महिला को अधिक मात्रा में पानी पीने की सलाह दे सकते हैं और नसों के जरिए शरीर में तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
कुछ मामलों में डॉक्टर गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की सलाह भी दे सकते हैं। ऐसा खासकर पहली तिमाही के दौरान किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर अगर गर्भावस्था की पहली तिमाही में गंभीर रूप से ओलिगोहाइड्राअम्निओस होता है, जो माँ व शिशु दोनों के लिए ही गंभीर जोखिम उत्पन्न कर सकता है और उसका इलाज नहीं किया जा सकता है, जो डॉक्टर माँ को गर्भपात कराने की सलाह दे सकते हैं।
कुछ जरूरी बातों का ध्यान रख कर प्रेग्नेंसी के दौरान ओलिगोहाइड्रामनिओस यानी एमनियोटिक द्रव की कमी को रोका जा सकते हैं, जैसेः
हां, 37वें सप्ताह में कम एमनियोटिक द्रव के साथ सामान्य प्रसव संभव है। हालांकि, इसके लिए माँ का डॉक्टर की देखरेख में रहना आवश्यक हो सकता है।
गर्भावस्था के 6वें महीने में एमनियोटिक द्रव को बढ़ानें के लिए डॉक्टरी उपचार जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर अमीनोइन्फ्युजन, वेसिकोएम्नियोटिक शंट, फ्लूइड इंजेक्शन व मैटरनल हाइड्रेशन की प्रकिया को अपना सकते हैं।
अगर घरेलू तौर पर एमनियोटिक द्रव की कमी को पूरा करना चाहती हैं, तो आहार में निम्नलिखित खाद्यों का सेवन शामिल कर सकती हैंः
एमनियोटिक द्रव का स्तर बढ़ाने वाली सब्जियांः
एमनियोटिक द्रव का स्तर बढ़ाने वाले फलः
उम्मीद है कि ओलिगोहाइड्रेमनियोस और ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार से जुड़ी जानकारी आपके लिए कारगर साबित होंगी। एक बात का ध्यान रखें कि अगर सही समय पर एमनियोटिक द्रव की कमी के लक्षणों को पहचानकर ओलिगोहाइड्रेमनियोस उपचार किया जाए, तो इससे जुड़े जोखिम कम किए जा सकते हैं और स्वस्थ शिशु के जन्म की संभावना को भी बढ़ाई जा सकती है।
सम्बंधित लेख: Ectopic Pregnancy in Hindi
A
Suggestions offered by doctors on BabyChakra are of advisory nature i.e., for educational and informational purposes only. Content posted on, created for, or compiled by BabyChakra is not intended or designed to replace your doctor's independent judgment about any symptom, condition, or the appropriateness or risks of a procedure or treatment for a given person.