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हर माँ के लिए ज़रूरी हैं दूसरी तिमाही में ब्लड, यूरिन और ये स्क्रीनिंग टेस्ट

हर माँ के लिए ज़रूरी हैं दूसरी तिमाही में ब्लड, यूरिन और ये स्क्रीनिंग टेस्ट

24 Jul 2018 | 1 min Read

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Author | Articles

प्रेगनेंसी के 3 से 6 माह के दौरान भी कुछ टेस्ट होते हैं, जिनका प्रमुख काम बच्चे की ग्रोथ चेक करना है. आपकी सेहत को ध्यान में रखते हुए ही ये टेस्ट होते हैं. इसलिए इस दौरान डॉक्टर की सलाह और परामर्शों का पालन करें।

 

दूसरी तिमाही में होने वाले ब्लड टेस्ट

 

डायबिटीज़ का पता लगाने के लिए ग्लूकोस स्क्रीनिंग टेस्ट

 

कई महिलाओं को इस दौरान डायबिटीज़ का खतरा रहता है, ऐसा उन्हें भी हो सकता है, जिनका शुगर लेवल पहले नार्मल रहा हो. इसका सही समय पर पता न चलने पर माँ और बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. इस टेस्ट के लिए स्क्रीनिंग का सही समय प्रेगनन्सी का 24 से 28 हफ़्ता होता है. आपको एक हाई शुगर फ़्लूड पीने को कहा जाएगा कर एक घंटे बाद आपका टेस्ट किया जाएगा। अगर शुगर लेवल हाई निकला तो आपको ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट के लिए कहा जाएगा। ये टेस्ट खाली पेट होता है और इसमें 3 घंटे के अंतराल पर ग्लूकोस सलूशन देने बाद ब्लड टेस्ट किया जाता है.

 

मल्टीप्ल मार्कर टेस्ट

 

आपको 10 से 20वें हफ़्ते में एक ब्लड टेटस करवाना होगा। इसमें बच्चे को डाउन सिंड्रोम या किसी न्यूरो डिफेक्ट के लिए टेस्ट किया जाएगा। इसके रिजल्ट एक या दो हफ़्ते बाद आ जाते हैं.

 

ट्रिपल स्क्रीन या ट्रिपल मार्कर alpha-fetoprotein (AFP), estriol, human chorionic gonadotropin (hCG) चेक करता है.

चार स्क्रीन या चार मार्कर inhibin-A चेक करते हैं.

 

ये सिर्फ़ एक स्क्रीनिंग टेस्ट है, तो किसी भी बीमारी की पुष्टि करने के लिए आगे और टेस्ट करने होगा। लेकिन तभी जब आपका रिजल्ट पॉजिटिव आएगा।

 

दूसरी तिमाही में इमेजिंग टेस्ट

 

इस दौरान 18-20 हफ़्ते के बीच एक अल्ट्रासाउंड होता है, जिससे बच्चे के विकास और उसके शरीर के हिस्सों की ग्रोथ को चेक किया जाता है. अगर आपकी प्रेगनेंसी में रिस्क फ़ैक्टर ज़्यादा है, तो आपको और अल्ट्रासाउंड भी करवाने पड़ सकते हैं.

 

दूसरी तिमाही में जेनेटिक टेस्टिंग

 

Amniocentesis

 

ये टेस्ट बच्चे की जेनेटिक इनफार्मेशन निकालने के लिए होता है. इस टेस्ट में गर्भाशय को कवर करने वाले एमनीओटिक द्रव्य में मौजूद पदार्थों को चेक किया जाता है. इसकी मदद से शरीर में:

 

जेनेटिक डिसऑर्डर जैसे PKU (phenylketonuria) का पता चलता है

डाउन सिंड्रोम और क्रोमोजोम में किसी तरह के डिफ़ेक्ट का पता चलता है

संरचना से जुड़े विकारों, जैसे रीढ़ की हड्डी में कोई डिफ़ेक्ट

Rh की समस्या या किसी संक्रमण का पता लगता है

 

Percutaneous Umbilical Blood Sampling (PUBS)

 

18वें हफ़्ते के बाद भ्रूण के ख़ून का सैंपल लेकर टेस्ट किया जाता है, ताकि पता लग सके कि उसे डाउन सिंड्रोम, थाइरोइड, प्लेटलेट क कम होना या ऐसे कोई लक्षण तो नहीं। इस प्रोसेस में भ्रूण को ख़ून ट्रांसफर भी किया जा सकता है. इसके अलावा अगर आप कोई कोई लक्षण महसूस कर रही हों, तो डॉक्टर की सलाह लें. आपकी स्थिति के हिसाब से आपको टेस्ट सुझाये जाएँगे।

 

डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद किसी भी तरह से मेडिकल सलाह,  परिक्षण या डॉक्टरी जाँच को नज़रअंदाज़ करना नहीं है, किसी भी तरह की परेशानी में सबसे पहले डॉक्टरी सलाह लें.  

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